अमर हिंदुस्तान

देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आज सायं अपनी नदियों को जानो विषय पर एक शानदार कार्यक्रम किया गया। संस्थान के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में भारत ज्ञान विज्ञान समिति, उत्तराखण्ड के अध्यक्ष व घुम्मकड़ विजय भट्ट और सामाजिक चिंतक इन्द्रेश नौटियाल ने देहरादून घाटी में बहने वाली नदियों के बारे में उपस्थित श्रोताओं को स्लाइड चित्रों व वार्ता के माध्यम से महत्वपूर्ण जानकारी प्रदत्त की। विजय भट्ट बचपन से लेकर वर्तमान तक इस घाटी में अनेकों बार घुमक्कडी करके लोगों से बात कर चुके हैं, यात्रा के दौरान उन्होंने जो जाना समझा उसी आधार पर अपनी आंखों देखा वृतांत लोगों के समक्ष रखने का प्रयास किया। विजय भट्ट ने कहा कि इस घाटी का निर्माण दो चरणों में हुआ। पहले चरण में उत्तरी क्षेत्र में मसूरी रेंज तथा दूसरे चरण में दक्षिणी भाग में शिवालिक श्रंखला बनी। इस प्रक्रिया में लोअर हिमालयी क्षेत्र से आने वाली तलछट घीरे घीरे बीच के भाग में एकत्र होने लगी और इसके ही परिणाम से बीच मे गहरी कटोरे नुमा घाटी का निर्माण हुआ जो दून घाटी के नाम से जानी गयी। उन्होंने कहा कि दून घाटी में दो पनढाल हैं। यहां का जल प्रवाह दो विपरीत दिशाओं पूर्व और पश्चिम दिशा की तरफ बहता है। आशारोड़ी क्लेमेनटाउन की सड़क में बरसाती पानी भी दो दिशाओं की ओर बहता है। पूरब दिशा का जल सुसवा नदी से होते हुए गंगा में और पश्चिम का पानी आसन नदी के जरिये यमुना नदी में मिल जाता हैं। दून घाटी में बहने वाली जल धाराओं से यहां के सदाबहार जंगल खूब पनपते रहे और यहां की जमीन उर्वर होकरसमृद्ध होती गई और भूमिगत जलस्तर भी काफी ऊंचा बना रहा। इन्हीं विशेषताओं के कारण अंग्रेजी शासनकाल में यहां खूब नहरें बनीं और इनका पानी खेती मंे उपयोग किया गया। इससें किसानांे की आय में भी वृद्धि हुई। यहां का बासमती चावल, चाय व लीची ने दुनिया भर में प्रसिद्धि हासिल की। वर्तमान हालातों में दून घाटी में अनियंत्रित तरीके से बढ़ती बसाहट के साथ तथाकथित विकास के नाम पर चलने वाली अवैज्ञानिक योजनाओं व बढ़ते शहरीकरण के बारे में गहन चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इनकी वजह से यहां की नदियों अब गंदे नाले मे तब्दील हो गयी हैं और नहरें भीे समाप्त हो गई हैं। खेत खलिहानों व बाग बगीचों में कंक्रीट के जंगल पनप गयेे हैं। इन सबके चलते यहां की आबोहवा में बहुत गिरावट आ गयी है। सड़कों के नाम पर पुराने जंगल काट रहे हैं जो पर्यावरण केे लिये चिंता का विषय है। प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने उपस्थित लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि इस तरह के ज्ञानवर्धक व भौगोलिक जानकारी से युक्त कायक्रमों के जरिये लागोंको स्थानीय नदियों और उसके पर्यावरण से जुड़े विविध पक्षों पर जागरूकता बढ़ेगी। कार्यक्रम समापन पर दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के कार्यक्रम सलाहकार निकोलस ने कार्यक्रम के निष्कर्ष पर बात करते हुए सभी उपस्थित जनों को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर विद्या भूषण रावत, जनकवि अतुल शर्मा, बिजू नेगी, कमलेश खंतवाल, डॉ.मालविका चौहान, डॉ.रवि चोपड़ा, डॉ.नन्द नंदन पांडे, चन्दन सिंह नेगी, कमला पन्त, सुंदर सिंह बिष्ट, विजय शंकर शुक्ला, बिजू नेगी, कुसुम रावत, डॉ.अरुण कुकसाल, इरा चौहान, अनूप बडोला, पूरण बर्त्वाल, शोभा शर्मा, जगदीश सिंह महर, सुशीला भंडारी, शैलेन्द्र नौटियाल, विनोद सकलानी, हिमांशु आहूजा, डॉ.रेणु शुक्ला सहित शहर के अनेक सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, पत्रकार, साहित्यकार सहित दून पुस्तकालय के युवा पाठक उपस्थित रहे।

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