अमर हिंदुस्तान

 

नारायणबगड़ । नंदाधाम भारकोटबार भंगोटा में चल रहे नंदा महोत्सव के अंतिम दिन रविवार को नंदा अष्टमी के पर्व पर अपनी अराध्या नंदा देवी को कैलाश विदा करने के लिए नंदा भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। मां नंदा के कैलाश की ओर प्रस्थान करते वक्त ध्याणियां नंदा देवी के डोले से लिपटकर रो पड़ी।विदाई के इस भावुक पलपर हर किसी की आंखें नम हो उठीं। तीन साल के अंतराल पर कडा़कोट पट्टी के 9 गांवों के लोग आषाढ़ मास की नंदा अष्टमी तिथि पर अपनी ईष्ट देवी मां नंदा को कैलाश विदा करने के लिए नंदा महोत्सव का आयोजन करते हैं। और यह धार्मिक परंपरा सदियों से चली आ रही है। रविवार को नंदा महोत्सव के अंतिम दिन नंदाधाम भारकोटबार में मां नंदा की कैलाश विदाई की तैयारियां सुबह से ही शुरू हो गई थी। चोपता, रैंस, तुनेडा़, बैथरा, लोदला, सोलटा, डडुवागाड़, कुश तथा भंगोटा गांव से बडी़ संख्या में लोगों का नंदाधाम मे आगमन होने लगा था। आचार्यों ने गणपति पूजन, पंचांग पूजा करने के बाद नंदा देवी का श्रृंगार कर आरती उतारी और कन्याओं का पूजन किया।इस दौरान नंदा देवी कला मंच के जागर सम्राट बुद्धि सिंह दानू ने नंदा के जागरों से माहौल को नंदामय बनाए रखा। मां नंदा देवी की कैलाश विदाई से पूर्व घुडे़त नृत्य तथा मां नंदा को हाथी पर विराजमान कर ढोल-दमांऊ की तालों पर नंदाभक्तों ने नाच किया। कैलाश विदा करने से पहले केले के तने पर बनाई गई मां नंदा देवी की मुखाकृति को सुसज्जित डोली में विराजमान किया गया। इस अवसर पर ध्याणियों ने विदाई के मांगल गीतों से लोगों को भावविभोर कर दिया। महिलाओं ने अपनी अराध्या नंदा देवी को मौसमी फल-फूल, श्रृंगार सामग्री की भेंट चढा़कर खुशहाली की मनौतियां मांगी। देरशाम जैसे ही मां नंदा देवी की डोली कैलाश जाने के लिए मंदिर के गर्भगृह से परिसर में आई पंचनाम देवताओं ने अवतरित होकर अक्षत बरसाते हुए नंदा देवी को कैलाश के लिए विदा किया। मां नंदा को अपने ससुराल कैलाश की ओर जाते देखकर महिलाएं भावुक हो उठीं और डोली से लिपटकर रोने लगी। इस दृश्य को देखकर नंदाभक्तों की आंखें भी भर आईं। भूमियाल देवता की अगुवाई में मां नंदा देवी के जयकारों के बीच नंदा देवी कैलाश के लिए विदा हो गई।

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