लक्ष्मण शक्ति मंचन देखकर दर्शक हुए भाव – विभोर
Amar hindustan
अगस्त्यमुनि। श्री अगस्त्य ऋषि की पावन तपस्थली में हिमालयन वीरांगना संस्था के तत्वावधान में महिला श्री रामलीला समिति अगस्त्यमुनि जनपद रुद्रप्रयाग के द्वारा आयोजित श्री रामलीला मंचन के नवम दिवस का शुभारंभ बतौर मुख्य अतिथि लोकसंस्कृति के ध्वज वाहक, प्रख्यात संस्कृतिकर्मी एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रहे श्री विजय चमोला जी (प्रधानाचार्य) गौरी मेमोरियल पब्लिक इ.का. विजयनगर, कार्यक्रम अध्यक्ष बहुमुखी प्रतिभा के धनी रंग कर्मी, सामाजिक सरोकारों से जुड़े आदर्श शिक्षक एवं जनपद के नहीं बल्कि उत्तराखण्ड के गौरव के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले लखपत सिंह राणा, चेयरमैन डाॅ. जैक्सवीन नेशनल पब्लिक स्कूल गुप्तकाशी, विशिष्ट अतिथि श्रीमती सुमन जमलोकी (जिला महामंत्री) महिला मोर्चा भाजपा, रुद्रप्रयाग, श्रीमती रागिनी नेगी (प्रधानाचार्या) रा. बा. इ. का. अगस्त्यमुनि, रुद्रप्रयाग, कैलाश पटवाल (अधिशासी अधिकारी) नगर पंचायत अगस्त्यमुनि, रुद्रप्रयाग, प्रदीप जिरवाण (प्रतिष्ठित व्यवसायी) अगस्त्यमुनि, श्रीमती निर्मला गैरोला (अध्यक्ष) सिंह वाहिनी सांस्कृतिक समिति कण्डारा तथा अन्य आमंत्रित अतिथियों के हाथों हुआ। अपने सम्बोधन में लखपत सिंह राणा ने कहा कि क्षेत्र में अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने के लिए ऐसे आयोजनों का होना आवश्यक है। महिलायें जहाँ घरेलू काम-काज में व्यस्त रहने के कारण चाहरदीवारी तक ही सीमित रहती थी, वहीं आज रामलीलाओं का कुशल मंचन कर रही हैं, जो कि महिला सशक्तिकरण का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है और यह हमारे लिए बहुत सौभाग्य की बात है। विजय चमोला ने अपने संबोधन में कहा कि वीरांगना संस्था की अध्यक्ष श्रीमती माधुरी नेगी की अभिनव पहल से महिलाओं को आत्मबल मिलेगा। जिस आत्मविश्वास के साथ महिलाएंँ अभिनय कर रही हैं उससे तो प्रतीत हो रहा है कि निःसन्देह काबिले तारीफ है। इस मौके पर समिति की अध्यक्ष और इस सबकी मुख्य सूत्रधार श्रीमती माधुरी नेगी ने सभी का हार्दिक आभार व्यक्त किया है। महिला रामलीला मंचन के नवम दिवस में माँ दुर्गा की वन्दना के बाद रावण दरबार का दृश्य और रावण के पात्र का उत्कृष्ट प्रदर्शन, मेघनाद- लक्ष्मण संवाद (दोनों पात्रों का उत्कृष्ट प्रदर्शन), सुषैन-राम संवाद, राम जी विलाप, हनुमानजी का रौद्र रूप, भरत-हनुमान संवाद, मेघनाद हनुमान संवाद, कुम्भकरण का अभिनय विशेष सराहनीय रहे। श्री दुर्गा वन्दना के बाद मंचन के प्रथम दृश्य में श्रीराम द्वारा लंका पर आक्रमण किए जाने की योजना बनाई गई। सभी वानरों ने लंका को चारों ओर से घेर लिया तभी रावण की आज्ञानुसार मेघनाद युद्ध करने के लिए आया। सर्वप्रथम उसकी मुलाकात हनुमान जी से होती है जहांँ दोनों के बीच जमकर संवाद होता है। बाद में लक्ष्मण के आने के बाद मेघनाद व लक्ष्मण संवाद प्रारंभ हो जाता है। दोनों के संवादों का बैठे दर्शकों ने अनंद लिया तथा तालियां बजाकर कलाकारों का उत्साहवर्द्धन भी किया। अंत में मेघनाद, लक्ष्मण पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करता है जिसके फलस्वरूप लक्ष्मण मूर्छित होकर जमीन पर गिर जाते हैं। हनुमान जी उन्हें वहां से उठाकर राम दल में ले आते हैं जहांँ प्रभु राम लक्ष्मण जी की हालत को देखकर बिलख-बिलख कर रो पड़ते हैं। रामजी का विलाप सुनकर दर्शक भी अपने आंसू नहीं रोक सके। इसी बीच विभीषण की सलाह पर जामवंत द्वारा लंका से सुषेन वैद्य को लाने की बात कही जाती है जिस पर हनुमानजी लंका जाकर सुषेन वैद्य को ले आते हैं। सुषेन वैद्य संजीवनी बूटी द्वारा ही लक्ष्मण जी के उपचार करने की युक्ति बताने के साथ ही कहते हैं यदि सूर्योदय से पूर्व संजीवनी बूटी नहीं आई तो लक्ष्मण जी के प्राण बचाना असंभव होगा। उसी समय तत्काल हनुमान जी संजीवनी बूटी लाने के लिए चले जाते हैं। रास्ते में कालनेमि नामक राक्षस अपनी तमाम माया फैलाकर हनुमान जी का रास्ता रोकने का प्रयास करता है। वहीं कालनेमि स्वयं एक साधु का रूप धारण कर हनुमान जी को गुरूमंत्र दिए जाने को कहता है तभी तालाब में स्नान करने गए हनुमान जी को एक मछली कालनेमि की माया के बारे में बता देती है तब हनुमान जी कालनेमि की माया को समाप्त करते हैं। और सुषेन वैद्य द्वारा बताए गए पर्वत पर संजीवनी बूटी लाने के लिए पहुंचते हैं परंतु जब वह पर्वत पर विविध प्रकार की बूटियों में संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाते हैं तो वह पूरा पर्वत लेकर रामादल की ओर चल देते हैं। वहीं बीच में जब हनुमान जी पर्वत लेकर अयोध्या के ऊपर से गुजरते हैं तो भरत ने उन्हें कोई राक्षस समझकर एक ही वाण से घायलकर जमीन पर गिरा दिया जाता है । अंत में हनुमान जी भरत को पूरी कथा बताकर रामादल पहुंचते हैं जहांँ सुषेन वैद्य संजीवनी बूटी से लक्ष्मण का उपचार करते हैं। रावण को लक्ष्मण के जिंदा होने की खबर प्राप्त होती है। वह मेघनाद को आराम की सलाह देता है व कुम्भकरण को जगाता है। कुम्भकरण युद्ध भूमि में जाकर श्री राम के वाणों मारा जाता है।